रंजो-ग़म का है असर हर शख़्स ही ग़मगीन है
चैन की टूटी न जाने किसलिये अब बीन है
आज ज़ुल्मी ज़ुल्म करके घूमता बेख़ौफ़ पर
बेड़ियों में नेक कहते जुर्म भी संगीन है
ख़्वाब पूरा हो न हो ये बात दीगर है मगर
जो दिखाए इंदधनुषी, स्वप्न हर रंगीन है
आईने सा दिख रहा जो अस्ल में कमज़र्फ वो
रौब रुतवे की मेहर से हुश्न का शौकीन है
अन्नदाता और सैनिक फर्ज़ से डिगता नहीं
बस मुसलसल रोज़ो-शब निज कर्म में तल्लीन है
हो गयी कायापलट क़ुदरत ने जब ढाया क़हर
ख़ून है चीखें पुकारें, मातमी हर शीन है
बिन पिया क्या प्रेयसी है, साज क्या श्रृंगार क्या
छटपटाती खलवतों में जल बिना ज्यों मीन है
आँख से छलके जो आँसू,बन गए गहरे समंदर
इसलिए हर एक सागर स्वाद में नमकीन है
ज्ञान को, विज्ञान को, हर काम को दे अहमियत
छा रहा संसार के हर मुल्क में अब चीन है
नीर दौलतमंद बनता जा रहा है संगदिल
कामकाजी अस्थिपंजर आज कितना दीन है
– स्नेहलता नीर