आँखों की नमी अब
पलकों में नहीँ छुपाती
कुछ इसलिए भी
ज़हर हो गई हूँ मैं,
दर्दे दिल को मुस्कुराहटों में अब
नहीँ छुपाना कुछ इसलिए भी
ज़हर हो गई हूँ मैं,
ज़ोर जबरजस्ती के विरुद्ध
उठती आवाज को मेरी ना दबा पाना
कुछ इसलिए भी जहर हो गई हूँ मैं,
दहसत भरी आँखों का सामना करने आना
कुछ इसलिए भी ज़हर हो गई हूँ मैं,
उन्हें भी पता है और मुझे भी
ज़हर हीं ज़हर को काटता है कुछ
इसलिए भी ज़हर हो गई हूँ मैं।
– पिंकी दुबे