मानवता को शर्मसार करने वाली घटना
घटित होती रहेगी
बढ़ती जाएगी
नर पिशाचों की नृशंसता
फिर से निकाल लिया जाएगा एक धिक्कार जलूस
या फिर
दिन ढले निकल पड़ेंगे लोग मोमबत्तियाँ जलाकर
क्या ये ही है कोई समाधान!
अपराधी जेल में डाल दिये जाएँगे,
सालों चलेंगे मुक़दमे या
धनंजय चढ़ेगा फाँसी पर
क्या इससे होगा कोई प्रतिकार!
(क्या भर पाएगा इससे!
पीड़िता का सजल ज़ख़्म)
केवल सख़्त क़ानून से भी क्या सम्भव
होगा निराकरण!
हज़ारों लड़कियाँ मरती रहेंगी
घुमर घुमर कर
और हम केवल फुफकारते रह जाएँगे ।
कारण भी खोजना होगा
(हिंसक पशुओं की इस बर्बरता का)
नैतिक पतन की पराकाष्ठा का
सम्बन्धों की इस असहजता का!
समाज को बदलना होगा अपना तानाबाना
और वीभत्स मानसिकता।
सड़ी गली परम्पराओं का
सभ्यता के मापदंडों का
करना होगा रूपांतरण,
बदलना होगा दहशत का यह माहौल
बनाना होगा एक सहज वातावरण
कि बेटियाँ विचर सकें निश्शंक होकर।
चाहे वह आम आदमी हो या
दल, मीडिया या नेता
जाति, मज़हब से हटकर
जागना होगा, उठना होगा सबको
क़लमकारों को सच बोलना होगा,
कवियों को लिखना होगा सच
लाना होगा जनज्वार
बूँद बूँद से ही बनेगा सागर
‘शक्तिशाली है तलवार से कलम।’
बेटियों को होना होगा सजग,
आत्मरक्षा हेतु तत्पर
मोमबत्ती की तरह गलना नहीं
जलना होगा मशाल बनकर
चुनौतियों का करना होगा सामना
साहस सहित
हारना नहीं, करना होगा संघर्ष!
-जयश्री पुरवार
4सी, 311
सिल्वर सिटी 2, विप्रो चौराहा के पास,
ग्रेटर नोएडा- 201310