नंदिता तनुजा
आँखों की भाषा
कभी आसान है
तो कभी इतनी
जटिल की..
दर्पण में स्वयं को
समझना भी
कठिन प्रतीत होता है…
कभी लगता
ये आँखे हमेशा
बोलती है
कि देखों ये जो
तुम्हारें हिस्से में आई है
बहुत खूबसूरत तन्हाई है….
मन की ख़ुशी ढूंढना किधर
आस-पास में भी जो ठहरे
एक समय बाद…
अक्सर वही दे जाते जुदाई है…
कभी आस बनकर
हँस पड़ती है
ये आँखे…
तेरी आँखों के चमक में
तेरे धड़कनों की खनक
कुछ यूँ भी मुस्कुराई है..
मन के कोने में आस
विश्वास बनकर…
प्रेम के नाम तो
कभी जीवन के नाम
ख्वाहिशो से खिलखिलाई है…
मौन आँखे सिर्फ़
बोलती ही नहीं…
बल्कि सच समझती है..
स्वयं को कभी अश्रु से
कभी दृढ़संकल्प के बाँध से
एक राह को जोड़ती है
जीवन को अपनी ओर खींचती हैं…
कि सब्र आँखों में दिखे ज़िंदगी के हज़ार सच और साथ देता है हौसला..!