अनेकता का भाव और रिश्तों की उधेड़बुन: भानु प्रकाश रघुवंशी

भानु प्रकाश रघुवंशी
शिक्षा- कला स्नातक, स्नातकोत्तर (हिन्दी)
प्रकाशन- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लगातार रचनाएं प्रकाशित। साहित्य धरा अकादमी से “जीवन राग” एवं न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से चयनित कविताओं का संग्रह ‘समकाल की आवाज’ प्रकाशित। साहित्य काव्य संग्रहों में कविताएं प्रकाशित। साहित्यताओं का अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी, गुजराती और नेपाली भाषा में अनुवाद।
-आकाशवाणी और अन्य मंचों से काव्य पाठ का प्रसारण।
-प्रगतिशील लेखक संघ और इप्टा इकाई अशोकनगर में सक्रिय सदस्य।
-कुछ नाटकों में अभिनय।
संप्रति- कृषि कार्य
सम्पर्क- ग्राम-पाटई, पोस्ट-धुर्रा, तहसील-ईसागढ़,
जिला-अशोकनगर, मध्यप्रदेश-473335
मोबाइल-9893886181

अनेकता का भाव

दोनों का रंग-रूप भिन्न
पर दोनों ही सुन्दर
संवाद की भाषा भी बिलकुल अलग
अलग-अलग ही निकलती हैं
चुग्गे की तलाश में,
काली चिड़िया सफेद चिड़िया को
फूटी आँख नहीं सुहाती
इसलिए एक पेड़ पर नहीं बनातीं
अपने घौंसला

सारी भिन्नताओं के बीच भी एक
समानता देखी जाती है
कि जब धरती पर मारी जाती है
एक भी चिड़िया
शोक में, विलाप में
वे सब एक साथ होती हैं
शिकारियों के ख़िलाफ़ विद्रोह में

यही एकजुटता भयभीत करती है
शिकारी को
और वह छुपकर ही करता है शिकार

दु:ख धीरे-धीरे ही सही
ख़त्म करता है अनेकता के भाव को

🔴

रिश्तों की उधेड़बुन

कोटरों में इंतज़ार करते वो हरियल हैं पिता
जिनके चूज़े पंख मजबूत होते ही
उड़ जाते हैं कहीं उनसे दूर
फिर नहीं लौटते उस कोटर में
जहां हुआ जन्म, उगे पंख
भरी पहली उड़ान जहां से

पिता बच्चों को बच्चे ही समझते हैं
और चिंता करते हुए उनके सुख दुःख की
बने रहना चाहते हैं पिता ही
पर बेटे हमेशा बेटे नहीं रहते
वे पड़ोसी बनकर भी रहने लगते हैं
पिता के घर में
या चले जाते हैं दूसरे शहर, दूसरे देश

कभी तीज त्यौहार लौटते हैं घर
तो उतावले ही रहते हैं वापस जाने को
न पूछो तब भी बताते हुए अपनी व्यस्तता की वजह,
बचपन में सिखाया गया सेवाभाव
अबतक इतना ही बचा होता है उनके पास
कि मां के घुटनों में दर्द की बात सुनकर
झोले से निकालते हुए सस्ता सा वाम
ऐसे मलते हैं कि अब छूमंतर हो ही जायेगा
बरसों पुराना रोग
पिता के मोतियाबिंद ऑपरेशन के खर्चे की
बात करते हुए बताने लगते हैं
पत्नी की बीमारी के बारे में
बच्चे की आंखों पर चढ़े हुए चश्मे का नंबर
और ज्यादा बढ़ जाने के बारे में,
मंहगाई का रोना रोते हुए बताते हैं
अगले माह से पैसे न भेज पाने की लाचारी

स्वजनों की चिंता करते भागते हुए से लौटे पिता
अगर रोजीरोटी के लिए जाना भी पड़ा हो परदेस
पर किसी खास दिन,खास मौके पर
लौटने का वादा करके गये बेटे
पिताओं की तरह कभी न लौटे
बग़ैर बच्चों के आंगन रहा सूना सूना
और मन भी,आंगन जैसा

‘साहित्यताओं नहीं है ऐसा
कि बीत जायें छह सात बरस
और खबर भी न ले हमारी,
ज़रूर कोई मजबूरी रही होगी’
बूढ़े मां-बाप, एक दूसरे को दिलासा देते हुए
एक बेटी भी न होने के लिए
रोते हैं अपने दुर्भाग्य पर