अपने पास होंगे,
पर अपनों में नहीं रह पाएंगे,
लोगों के कटु इरादों से,
अब मानवता जी न पायेगी,
सुख, शान्ति, समृद्धि अपनों से दूर भगाएगी
ईर्ष्या, क्रोध, द्वेष,
मानवता को छिन्न-भिन्न करवाएगी,
इस कटु काल में अपने ही चोट पहुंचाएंगे,
नवीन विचारक को,
गिरा देंगे, अवनति के गर्त में
निज स्वार्थ से लबालब हो कर,
अपनों के हृदय में खंजर वे घोपेंगे,
सत्यता धर्म की वे भूलकर,
व्यापार धर्म बनाएंगे,
ईश्वर को लाचार बना वे
अपनी उन्नति में लग जाएंगे,
धीरे-धीरे बर्बर,
जंगली जानवर-सा मानव बन जाएगा,
कर कत्ल नैतिकता का,
अमृत रूपी विषपान करवाएगा,
यह अनोखा स्वर्ग होगा,
मक्कार, झूठे, लोभी महात्माओं का,
चहुंओर अंधेरा काल का,
मानवता, मानव में मर जाएगी
दिनेश प्रजापत
ग्राम- मूली, जालौर
संपर्क- 7231051900