भारत माँ सुत थे अटल, मात्र न भारतरत्न
छीना बरवश धरा से, नभ का सफल प्रयत्न
रहे अटल जी कमलवत, राजनीति के संत
कवि-वाणी सुन रो पड़े, विह्वल धरा-दिगन्त
विजय कारगिल ने दिया, पाक-हृदय को चोट
अटल पोखरण का हुआ, जग जाहिर विस्फोट
राष्ट्रधर्म प्रति थे अटल, वाणी ओजस स्रोत
काव्य-शील-वक्तव्य से, करते ओतप्रोत
राष्ट्भाव हिमगिरि सदृश, हृदय सिंधु गंभीर
हिंदी-हिन्दुस्तान के, रहे अटल रणवीर
प्रभुपद में पा अटल-पद, हुआ अटल युग अंत
भीष्म पितामह अटल ने, पायी कीर्ति अनंत
अटल-आत्मा के लिए, नमन विनम्र अशेष
शांति मिले सुखधाम में, सद्कामना विशेष
गौरीशंकर वैश्य विनम्र
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