अटूट विश्वास: नंदिता तनुजा

नंदिता तनुजा

विपदा की घड़ी में
जो कड़ी मुझे तुमसें
सदा जोड़े रखी
वो अटूट विश्वास
मन का
जिसने टूटे मन को
जोड़ा है तेरे विश्वास के बंधन से

ना हर्ज़ है ना कोई फर्ज़
ना कभी मुझे लगा
तुम पर विश्वास करना
कोई मेरा कर्ज़ है
मन के हर कोने में उभरे
एहसासों से लिपटे
तेरे मन का मेरे मन तक होना
रिश्तों के ख़ातिर
जलना सीखा, तो कभी खुद को खोना
मन के एहसासों को जकड़ा
बांधा खुद तुमसें विश्वास का हर कोना
टूटे मन को संवारा है
जोड़ा है तुमसें, खुद को आस के बंधन से

प्रेम की अनुभूति को संजोया
ईश्वर ने बाँधा है प्रेम से
छल भी उजागर है यहाँ
कर्म की शिकायत है यहाँ
प्रेम है निस्वार्थ भाव की काया
कभी ना कहूँगी कि ये मोह माया
विश्वास का वृक्ष
अश्रु से प्रेम को सींचा
समर्पण लिए, प्रेम को जीता
जग में भली, जग की भाषा
मन भाया वो प्रेम की भाषा
कि कोरे-कोरे एहसासों को जी कर
टूटे सपनों को संभाला
जोड़ा मैंने तुमसें मन को, बाँधा प्रेम-बंधन से

कि अटूट विश्वास निष्फल नहीं होता,
कर्म की गति में देर भले होता
ईश्वर की आस्था हो मन में
समय के साथ बंधन बंधे और निभे है प्रेम से