बस यही सोच शरमाऊँ: गरिमा गौतम

जी करता है तुम्हें लुभाऊँ
प्यार की कुछ बूंदे छलकाऊँ
तेरे लिए खुद को सजाऊँ
मेहंदी से अपने हाथों को सजाऊँ
सिलसिला कहाँ से शुरू करूँ
यही सोच बस शरमाऊँ

जी करता है संग तेरे चलूँ
तुझसे दो बातें दिल की कहूँ
मन को तेरे बहलाती चलूँ
तेरे लिए गीत गाती चलूँ
सिलसिला कहाँ से शुरू करूँ
बस यही सोच लजाऊँ

प्यार में तेरे खो जाऊँ
जुल्फों को अपनी बिखराऊँ
अपनी ही बाहों में सिमट जाऊँ
लाज से घूँघट को सरकाऊँ
जो दिल में है सब कह जाऊँ
सिलसिला कहाँ से शुरू करूँ
बस यही सोच शरमाऊँ

गरिमा राकेश गौतम
कोटा, राजस्थान