प्रोफेसर वंदना मिश्रा
हिन्दी विभाग
GD बिनानी कॉलेज
मिर्ज़ापुर- 231001
अब ट्रेन में सामने बैठे सहयात्री से
बातें करना आसान नहीं
आप पूछें, कहाँ जा रहे हैं? तो संभवतः
उसे याद आ जाए वह चेतावनी
‘अजनबी से मेलजोल ना बढ़ाएं’
हाथ की मूंगफली आगे करें
तो संभवतः अपनी ललचाई आंखें
माँ की घूरती आँखों से मिलने पर
हाथ हटा ले मासूम बच्चा
और अपनी निगाहों में ही
शातिर साबित हो जाएं आप
बातों का सिलसिला चलने पर भी
अयोध्या, गोधरा, अमेरिका, सीरिया, इराक
जैसे मसले
हिंदू, मुस्लिम, क्रांति, विद्रोह, स्वतंत्रता संग्राम
और यहां तक की गांधी भी
निर्विवाद नहीं रहे
विवादित हो गए प्रेमचंद भी
इस तरह दोनों ने बातचीत के
कई मुद्दे समाप्त कर दिए
“बात करनी हमें मुश्किल“ (1)
ऐसे ही तो नहीं लिखा था शायर ने
ज़रुर महसूस किया होगा उसने
ऐसी बेचैनी
यूँ तो मौसम निरापद विषय था
पर किसी ने आकाश के कुहरे पर (2)
भी बात करने को मना कर दिया
व्यक्तिगत आलोचना के भय से
अब यह बातूनी दुनिया
कहाँ से लाए बातें
बिना संदेह के घेरे में आए
(1) बात करनी हमें मुश्किल, कभी ऐसी तो न थी- मिर्जा ग़ालिब
(2) मत कहो आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है- दुष्यंत कुमार