छीनकर आवरण धरती का,
हम अभ्यारण्य बना रहे
करके आह्वान प्रलय का,
अब बाँध हम बना रहे
वधक गर्भिणी गजमाता के,
मनुष्य हम कहला रहे
रौंद कर निनाद प्रकृति का,
विश्व पर्यावरण दिवस हम मना रहे
शायद अपनी ही कुत्सितता को,
बख़ूबी हम खुद से छुपा रहे
-ज्योति अग्निहोत्री ‘नित्या’
इटावा, उत्तर प्रदेश