प्रेम मनुष्य का आंतरिक
गुण है
यह प्रेम करने वाले ही जान सकते हैं
प्रेम से परे दूर खड़े हुए लोग
जात-बिरादरी
अमीर-गरीब
गोरा-काला
लम्बा-छोटा ही
देख सकते हैं
उसका आंतरिक पक्ष
नहीं देख पाते वे
जैसे नदी के जल को मापने के लिए
उतरना होता है नदी में
वैसे ही
प्रेम को जानने समझने के लिए
प्रेममय होना होता है
तभी कोई
जान पाता है
प्रेम के ढाई आखर
शब्दों का जादू
-जसवीर त्यागी