आँखों के कानन में सपने: आशा पांडेय ओझा

आशा पांडेय ओझा
राजस्थान

आँखों के कानन में सपने, सागवान से बोये थे,
सच का बढई काट गया हम, हिचकी भर-भर रोये थे

खाद ऊर्जा वाली डाली, श्रम जल भी तो सींचा था
बची रहे ये नन्हीं कोंपल, तार धैर्य का खींचा था
रौंद गया रे समय मवेशी,
बेसुध से हम सोये थे
आँखों के कानन में सपने, सागवान से बोये थे
सच का बढई काट गया हम, हिचकी भर-भर रोये थे

कोरे-कोरे कच्चे-पाँव, पाँव थड़ी भर कर पाये
आशाओं की पकड़ उंगली
डग दो डग ही भर पाये
आभास कहाँ था यूँ गिरने का,
आसमान में खोये थे
आँखों के कानन में सपने, सागवान से बोये थे,
सच का बढई काट गया हम, हिचकी भर- र रोये थे

नर्म मुलायम ऐसे सपने, रेशम के ज्यों लच्छे थे
याद बहुत आते हैं सपने, सपने कितने अच्छे थे
नियति निगोड़ी तोड़ गई जो, मोती आस पिरोये थे

आँखों के कानन में सपने, सागवान से बोये थे
सच का बढई काट गया हम हिचकी भर-भर रोये थे