डॉ. निशा अग्रवाल
शिक्षाविद, पाठयपुस्तक लेखिका
जयपुर, राजस्थान
आज बड़ा मन विचलित सा है,
सोच का सागर हिलता सा है।
खुशियों की राहें कहीं खो गईं,
दुख की परछाईं भी गहरी हो गईं।
चाहा था हँसी की धुनें गुनगुनाना,
पर दिल ने चुना है दर्द का तराना।
आशाओं की कश्ती डगमगाई है,
ख्वाबों की दुनिया भी थरथराई है।
फिर भी उम्मीद का दिया जलाएंगे,
विचलित मन को संबल बनाएंगे।
आज भले मन उदास है, एक दिन मुस्कुराएगा,
विचलित यह दिल, फिर से गीत नया गाएगा।