रंजीता सिंह ‘फ़लक’
सुबह का पहला पहर
ज़िसमें शाम का धुंधलका भी है
बीते रात की खुशबू भी,
एक उजास और स्याह सी सुबह
तुम्हारे सीने पे सर रखकर
सूरज का इंतेजार
उतना हीं सुंदर है
जैसे सिरजना कोई
नयी दुनिया
बीते पहर
किसी बीते पहर
तुम्हें याद करना
प्रेम में जी लेने सा है