डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
जाने क्यों आज इंसां परेशां सा है
चूर मस्ती में है फिर भी रोता सा है
जाने क्यों आज इंसां परेशां सा है
भरी महफिल में है फिर भी तनहा सा है
ना गली का पता, ना मोहल्ला इसे
ना मोहल्ला इसे
प्रभु के लिए दर दर, भटकता रहे
भटकता रहे
सड़कों पे ये बेगाना, फिरता रहे
फिरता रहे
मंदिर मस्जिद हो चर्च या गुरुद्वारा चाहे
गुरुद्वारा चाहे
इसे बस प्रभु दर्शन चाहिए, दर्शन चाहिए
वो बड़े बड़े कमरों के, ऊंचे महल
ऊंचे महल
फिर भी सुने पड़े लागे, रहने में डर
रहने में डर
नहीं संग चले कोई चारों पहर,
चारों पहर
सभी को आज खुद की मौज मस्ती चाहिए
मौज मस्ती चाहिए
आज खुल कर खुशी से, जीना चाहिए
जीना चाहिए