सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश
सोचिए जरा! नहीं रहेगी जब
यह इंसानियत ही जिंदा
क्या ऐसे में भी फिर तुम
अपना यह धर्म निभा पाओगे
कर नीलाम अपने उस सदाचार
और संस्कृति को एक दिन
आधुनिकता की भेंट जब स्वयं
तुम चढ़ जाओगे
वह सदाचार जो आज सड़कों पर
अर्धनग्न हुआ फिरा करता है
डूब कर पाश्चात्य की रंगीनी से
कहां फिर कोई निकला करता है
लाख करोगे कोशिश तुम फिर
उससे वापस कैसे आ पाओगे
इस आधुनिकता की भेंट जब,
स्वयं ही तुम चढ़ जाओगे
आज सच के इस बाजार में यूं तो
इंसानियत बहुत महंगी हुई है
रख देते हैं कुछ गिरवी और कुछ
वो जो बेच दिया करते हैं
क्या तुम देकर कोई भी कीमत
फिर से इसे खरीद पाओगे ?
इस आधुनिकता की भेंट ही जब
स्वयं ही तुम चढ़ जाओगे
मान-मर्यादाएं सब टूटी इस क़दर
न है अब आंखों में डर न शरम
सिर्फ दिखावे और झूठ का ही अब
बाजार ही बस हो रहा है गरम
जाने किस करवट बैठेगा यह जो
चलन चल रहा, क्या रोक इसे पाओगे?
इस आधुनिकता की भेंट ही जब
स्वयं ही तुम चढ़ जाओगे