डाली डाली कुसुम खिले, बाहों की लहरें तुम्हें पुकारे
भोर की पहली किरण संग, सूरज की लाली तुम्हें बुलाये
गुलाबी देह मरुस्थल हुई, मन की चौखट पर काली छाया
आँगन की तुलसी व्याकुल, गौयें भी जोहत बाट तुम्हारी
मन के स्थिर अंँचल पर, स्मृति तुम्हारी सताती है
जैसे लगता ठहरे पानी में कंकरियाँ कोई फेंक रहा
भटक रहे मेरे नैना, प्रीत जगाए मन में कोई
दुर्लभ दर्शन को तरसे दीदा, प्रेम अग्नि सही ना जाय
हिया अबोध शिशु की भाँति, स्वयं के हठ में लीन हुआ
लाज ना लागे दुनिया से, मन का भय भी भागा
मन के सूनेपन में, शब्द गीत के चुनकर लिख दो
वही तराने फिर से प्रियतम, बांँसुरी की धुन संग गा दो
मन में उपजे अंकुरित प्रेम बीज, स्नेह नीर से तन्मय कर दो
आओ मेरे मनमीत प्रिये, नवीन प्रेम संगीत रचो
हाथों की मेहंदी की लाली से, प्रीत की चादर फिर से रंग दो
मिलन में इतनी क्यूँ देरी, कैसी बाधा बोलो गोविंदा
भाव के तुम भूखे, भक्ति की और कितनी परीक्षा
या तुम बना दो मीरा हँसते-हँसते विषपान करूं
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश