हुक्मनामे पर आया है हुक्म मुस्कुराने का
कोई पूछे हाल तो सब है भला बताने का
हुक्म है बच्चों को नया इतिहास पढ़ाने का
हुक्म है हुक़ूमत के सामने सर झुकाने का
सच का सूरज सियह बादलों की क़ैद में है
हुक्म है इन बादलों को और भी फ़ैलाने का
मुद्दों की बातें ज़ंग लगी तेग़ बनकर रह गई
हुक्म है मुद्दे से हटाके लोगों को लड़वाने का
अब भी कुछ चिल्लाते है आज़ादी का नारा
हुक्म है उन चिल्लाती गर्दनों को दबाने का
गर इस अँधेरी रात में भी ना जलाया चराग़
तो तुम्हारा हक़ नहीं हिंदुस्तानी कहलाने का
लो वो वक़्त आ गया जब सर पे बाँधे क़फ़न
हुक्म की चिंगारी को गर्म लहू से बुझाने का
सरफ़रोशी की तमन्ना को दिलों में जलाने का
बाज़ू-ए-क़ातिल से फिर एक दफ़ा टकराने का
जॉनी अहमद ‘क़ैस’