वामांगी: राजन कुमार

रंग मेहँदी से गोरे हाथों को, मुझे खुदपर वो सजाती है,
सांसो के आरोह-अवरोह में भी, नाम मेरा गुनगुनाती है

माँ-बाप छोड़े, नाम छोड़ा मेरी दुनिया को अपनी माना,
चंचल लड़की अब इतनी गंभीर, सारी इच्छाएं छुपाती है

मेरे वंश को नया युग दिया, ऋण कैसे मैं चुका पाऊंगा,
पति को परमेश्वर मान, देखो खुद देवी शीश झुकाती है

न जाने कैसे सुन लेती है, वो मेरी सभी अनकही बातें
मेरे दर्द से वो उदास, मेरी खुशी में ही वो मुस्कुराती है

ममता, प्रेम, त्याग, बलिदान, स्नेह की प्रतिमूरत वो,
इस दीये को करने रोशन, बन बाती खुद को जलाती है

मुसीबतों में ढाल बनी, दुखों को मारने तलवार बनी,
जब अंधेरी रात ने घेरे, वो सितारा बन जगमगाती है

सतीत्व है यह सावित्री का ही, यमराज ने भी हार मानी
अनेक व्रत कर-अन्न त्याग कर, वो उम्र मेरी बढ़ाती है

और क्या वर्णन करूँ नारी चरित्र के समर्पण का,
बन हृदय वाम अंग समाई, इसलिए वामांगी कहलाती है

राजन कुमार झा
पटनाज़ बिहार
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