ईर्ष्या की ज्वाला: डॉ. निशा अग्रवाल

डॉ. निशा अग्रवाल
शिक्षाविद, पाठयपुस्तक लेखिका
जयपुर, राजस्थान

ईर्ष्या की ज्वाला में, जो जलते हर पल,
आगे बढ़ने का सफर, उनके लिए मुश्किल है कल।

दूसरों की खुशियों में, अपना गम ढूंढते हैं क्यों,
सोचते हैं, मेरा मुकद्दर बना नहीं ऐसा क्यों?

पर ईर्ष्या की आग में, खुद ही जल जाते हैं,
सपनों की राह में वो, पीछे ही रह जाते हैं।

आगे बढ़ने की ताकत, जो दिल से आती है,
वो कभी ईर्ष्या में खोकर, हासिल ना हो पाती है।

दूसरों की तरक्की में जो, अपनी हार देखते हैं,
जीवन के इस सफर में, खुद को ही रोक लेते हैं।

ईर्ष्या से भरे मन में, कभी ना मिलती शांति अच्छी,
हर दिन की खुशी, दर्द में बदल जाती है सच्ची।

ईर्ष्या छोड़कर, अगर प्रेम से दिल भर लो,
दूसरों की सफलता में भी, अपनी जीत को पा लो।

आगे बढ़ोगे तब ही, जब दिल हो साफ और निर्मल,
ईर्ष्या की जंजीरें तोड़ो और उड़ान भरो निर्मल।

सफलता के रास्ते में, प्रेम ही साथी है सच्चा,
ईर्ष्या के बंधन को छोड़, बनो जीवन का राही सच्चा।