रूची शाही
तुम भी शायद जानते हो कि मैं तुम्हें फॉर ग्रांटेड लेती हूं
जानती हूं तुम कहीं नहीं जाओगे मुझे छोड़कर
जैसे बाकी लोग चले गए या चले जाते हैं
तुम जानते हो अपनी अहमियत
इसलिए तभी चुपचाप इंतजार करते हो।
तुम दरअसल मेरी अलमारी में रखी
कांजीवरम साड़ी जैसे हो
जिसे बहुत रेयर ही पहन पाऊं मैं
पर जितनी बार अलमारी खोलती हूं
मेरी नजर उस सिल्क साड़ी पे जरूर जाती है
मैं उसे छूती हूं महसूसती हूं
उसे वापस तह लगा के सलीके से रख देती हूं
पर मुझे पता है उमर के किसी भी पड़ाव पर पहनूं
मैं और ज्यादा ग्रेसफुल दिखूंगी।
मैने तुम्हें कभी प्रायरटाइज नहीं किया
कि हां सबसे अहम तुम ही हो
पर इतना ख्याल जरूर रखा कि तुम पुकारो
तो बिना देर किए सुनने आ जाऊं तुमको
और तुम भी जानते हो कि
जितना तुम बोल पाते हो
उससे कहीं ज्यादा सुनती और समझती हूं तुम्हें।
मेरे काम पास बहुत काम हैं करने को
तुम उस काम की तरह हो जिसे मैं समय पे ना करूं
तो भी इंपोर्टेंस कभी कम नहीं हो पाया
तुम दरअसल सहूलियत बन गए मेरी
तुम्हें पेंडिंग रख कर बहुत काम निपटा दिया मैंने
और जब तुम तक पहुंची तो तुम बिना किसी शिकायत के
मुस्कुराते खड़े मिले हो मुझे।
मेरे संवेदनशील मन को ये कहते हुए बुरा नहीं लगता
कि हां फॉर ग्रांटेड लेती हूं मैं तुम्हें
मेरे पास कोई तो है जिसे अपनी अहमियत से
ज्यादा मेरी अहमियत की पड़ी है
मैं हमेशा शुक्रगुजार रहूंगी तुम्हारी
कि तुमने खोने, बिछड़ने और दूर होने जैसे
तकलीफदेह शब्दों से मुक्त रखा हमारे रिश्ते को
और ये एहसास बचाए रखा है
कि तू चाहे जितना भी ग्रांटेड ले ले मुझे
मैं जानता हूं मुझसे ज्यादा इंपोर्टेंट कोई नहीं तेरे लिए।