दुःख कथा मेरी: प्रज्ञा अमृत

थपकी देकर मैं सुला दूँ,
बन्द कर अश्रु, न रो
दुःख कथा मेरी! तू सो


तुझमें है कितनी तपन,
कर लिया अतिशय सहन,
टूटा है कितना ये मन,
अब छिपा उन घाव को
दुःख कथा मेरी! तू सो


कौन देता किसका साथ,
छीने सब खाली हो हाथ,
आश्रय देता बस वो नाथ,
उसका ही विश्वास हो
दुःख कथा मेरी! तू सो


है दिखावे का ये जग,
मौका पाते लेते ठग,
रख अनुशासित तू पग,
छेड़ मत सुप्त पीर जो
दुःख कथा मेरी! तू सो

प्रज्ञा अमृत