जिसे देख मन बहका
वो है गंगा किनारे वाला
आंखों में विश्वास की हाला
होंठों पे सच्चाई का प्याला
श्याम रंग है उसका
हिमकर सी दमकती काया
वो सुबह का उगता दिनकर
वो साँझ के दिव्य दीप सा
वो शरद माघ की खिली धूप सा
है ऋतुराज के प्रथम दिवस सा
रसाल के मद्य मोझर सा
बिखराये सुगंध वो इत्रों का
वो प्रखर शब्द का स्वामी
गुण सभी उसके आसमानी
बातें लगती हैं उसकी
मानस का जैसे चौपाई
सृष्टि में है वो बहता पवन सा
मेरे भीतर पूज्य प्राण सा
मनुहार है वो मेरे हृदय का
हठ में भी लगता प्यारा सा
हरदम मधु छलकाता
मेरे अंदर मिश्री सा घुलता
हर घाव पर वो मरहम सा
हर रोग की औषधि सा
भटकाता है वो हमको
उसका अनुपम स्वरूप
मादिक मेघों सा वो हर पल बरसे
मेरा मन कोमल स्पर्श को तरसे
मादकपन का वो विस्तारक
मेरे उर का है अवलंबन
छूना चाहूं उसके संग
अनुराग का सर्वोच्च शिखर
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश