एक दिन मित्र ऐसा भी आयेगा
कोरोना भी कहानी बन जायेगा
धीरज धर ओ मानव तब तक
यह प्रलयंकारी निकले जब तक
प्रलय के बाद भी जीवन है आया
क्यूं हो इतना निराश संयम की है माया
मत भूल पूर्वजों के संस्कारों को
मत दौड़ अंधी दौड़ आधुनिकता की
नियम कायदे बनाए थे
तुम्हें ही बचाए रखने को
दकियानूसी कह ठुकराए थे तुमने
अब जब प्रकृति लगी ठुकराने तुमको
तब याद आया पाठ शुचिता को तुमको
चरण प्रक्षालन से लेकर सूतक तक
सब कुछ तो था महामारियों से बचने को
अब भी समय गया नही है समझो
नए के नाम पर पुराने को ना त्यागो
कोरोना तो है बस ‘राव’ एक चेतावनी
ना संभले अब भी तो
आगे ना होगा कोई नाम लेवनी
राव शिवराज पाल सिंह
जयपुर, राजस्थान