प्रश्न होते हैं
असीमित अनंत
उत्तरित-अनुत्तरित
लघु-दीर्घ
बहुविकल्पीय
प्रश्न वन दूर दूर तक
फैले
उजले-मैले कुचैले
कटु, मधु, कसैले
मोहक, विषैले
प्रश्नों की होती है
पूरी प्रश्नावली
साथ संलग्न रह सकती है
संपूर्ण उत्तरमाला
दिग्दर्शिका, दीपिका
सरलतम कुंजिक
खोलती है प्रश्नों के ताले
ऐसे में
खुश रहते हैं उत्तर देने वाले
प्रश्नों के उत्तर मिलते हैं
कभी खोजकर
कभी सोचकर
कभी रटकर
या नकल करके
प्रश्न के साथ जुड़ा होता है
एक बड़ा सा प्रश्नचिह्न
वह प्रश्न की सुरक्षा में
रहता है सन्नद्ध
एक शक्तिशाली अस्त्र सा
एक रक्षक सा
यह तभी हटेगा
जब प्रश्न का सही उत्तर मिलेगा
प्रश्नों का उत्तर देना सिखाया जाता है
घर में
विद्यालय में
परीक्षा में
कार्यालय में
सदन में
सभा में
प्रश्न कभी समाप्त नहीं होते
जीवन प्रश्नों के हल करने में
बीत जाता है
प्रश्नपत्र में
सौ में सौ अंक की
आशा करना व्यर्थ है
जीवन का यही सरलार्थ है
गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’
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