अनामिका गुप्ता
गरज रहे कारे बदरा
उमड़ घुमड़ रहे कारे बदरा
रिमझिम रिमझिम बरखा सुहानी
टिप टिप टिप टिप बरसा पानी
सावन में जो बरसे बदरा
तड़प तड़प जाए है जियरा
बरखा जो तन को छू जाती है
तन मन में आग लगाती है
क्यों दूरी ऐसे में प्रियतम
याद तेरी हाय आती है
झूला झूले हैं सखियां
हंस-हंसकर करती हैं बतियां
ना जाने कब आओगे
रस्ता तकती हैं अंखियां
बीत न जाये कहीं सावन
खो जाये ऋतु मनभावन
इससे पहले आ जाओ जरा
कहती है सजनी तुमसे साजन
मरते रहेंगे तेरे लिए हरदम
खैरियत तेरी मांगी है रब से
हमने अपनी दुआओं में हरदम
जीते हैं लोग एक-दूसरे की खातिर
हम तो
मरते रहेंगे तेरे लिए हरदम