अनामिका गुप्ता
बेशर्म बेहया
निर्लज्ज हो गई
कैसी यह दुनिया
संगदिल हो गई
भरी सभा में लुटी
द्रौपदी की अस्मत
पर अब तो नीलाम
सरेआम हो गई
नंगा नाच हुआ सड़कों पर
जुर्म हँसा ठहाके मारकर
रख दिया कानून को
ताक पे धरकर
चीख-पुकार ना कोई सुनने वाला
ना मरहम घाव पर लगाने वाला
जाने कहां इंसानियत खो गई
आग मणिपुर की थमी नहीं
ज्वालामुखी बंगाल में फट गया
निर्वस्त्र पिटाई नारी की कर
कलेजा क्यों ना दुनिया का फट गया
कब तक ये अत्याचार चलेगा?
कब तक समाज यह मौन रहेगा
अस्मत है नारी घर-समाज की गर?
पूछती हूं मैं?
सुरक्षा इसकी कौन करेगा