रामसेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश
तेरे राज-ए-मुहब्बत को हम समझ न पाए हैं
इस खूबसूरत कायनात से हम निकल न पाए हैं
तुम्हारी मुस्कुराहट पर बस मरते रहे हम,
इजहार ए मोहब्बत हम कर न पाए हैं
तुम्हारे दिल में मुहब्बत थी या नफरत मैं जान न पाया
वक्त आने पर बेहिसाब हमने साथ निभाया
मुश्किलों में कभी न दूर हुए हम अपने जमीर से,
देखकर हसीन चेहरा हमने दिल से सुकून पाया
अब तुम मेरे वतन से बे वतन हो गए हो
हो गई मुहब्बत मुझको तो किस जतन से खो गए हो
खबर आती है जब कभी तेरी खुशनसीबी की,
लगता है जैसे अब तुम मेरे हो गए हो
इस राज ए मोहब्बत को तुम कब तक छुपाओगी
मेरी गफलत भरी जिंदगी में क्या कभी वफ़ा लुटाओगी
बेसब्री से इंतजार है इस चमन मे तुम्हारा,
बता दो कब मुझे तुम अपनी पलकों पर झुलाओगी