पलाश- भारद्वाज दिलीप

रातें जानती हैं
ख़्याल करती

जागती रही
करती बातें
फिजाँ से

जाते जाते उजाले की ओर
कहती बस यही

‘मैं तुम्हें देखता रहूँ सदा यूँ ही’

कुछ पलों बाद
सूरज ने दस्तक दे
अंधेरों को विदा किया!

अँधेरे की विदा
के बाद

सूरज के प्रकाश में
इस जमीन पर
खुबसुरत सा द्रश्य

जिसे तुमने बनाया

उस नदी के किनारे पर
इक भाग में पलाश के पेड़ को रोपित किया!

-भारद्वाज दिलीप