मेरी उलझनों- डॉ ऋतु त्यागी

मेरी उलझनों
रुई के गोले सी हो जाओ
कोई हवा आए
जो तुम्हें उड़ा कर दूर ले जाए
या तुम मेरी आँखों की नींद बन जाओ
कोई रात आए
जो तुम्हें सुला कर दूर…
निकल जाए ।
हाँ! ऐसा भी हो सकता है
कि तुम मेरी हथेली पर
रेखा बनकर चिपक जाओ
जिसे मैं मिटाने की
ता-उम्र कोशिश करती रहूँ
🔹 🔸 🔹

मन की तितलियाँ

उसके मन में उड़ती थी
अलग-अलग रंगों की
बहुत-सी तितलियाँ
वह चकित भाव से उनके रंगों को देखती
फिर कभी एक के पकड़ती
तो कभी दूसरी को
इस तरह दिन गुजरते गये
धीरे-धीरे तितलियाँ थकने लगी
पंख पकने लगे और उनका उड़ना बंद
आजकल उसने एक
नया काम शुरू कर दिया है
वह थकी हुई तितलियों को
अपनी कविताएँ सुनाती है ।

-डॉ ऋतु त्यागी

नाम- डॉ ऋतु त्यागी
जन्म-1 फरवरी
शिक्षा- बीएससी, एमए (हिन्दी, इतिहास), नेट (हिन्दी, इतिहास), पीएचडी
सम्प्रति- पीजीटी हिंदी केंद्रीय विद्यालय सिख लाईंस मेरठ
रचनाएँ-कुछ पत्रिकाओं में कविताएँ तथा कहानियाँ प्रकाशित
पुस्तक- कुछ लापता ख़्वाबों की वापसी, समय की धुन पर (काव्य संग्रह)
पता-45, ग्रेटर गंगा, गंगानगर, मेरठ