माँ चली गई: वंदना मिश्रा

प्रोफेसर वंदना मिश्रा
हिन्दी विभाग
GD बिनानी कॉलेज
मिर्ज़ापुर- 231001

पिता माँ से 14 वर्ष बड़े थे
बिस्तर पर जल्दी पड़ गए

माँ उन्हें इस तरह
देख-देख सूखती
जैसे घात लगाए बिल्ली से
कबूतर
ठंडी साँस ले कहती “पता नहीं
कौन सा दिन देखना पड़े !”

पिता केवल दो रोटी खाते
माँ रोटियां थोड़ी मोटी बना देती
पिता इसे माँ की ‘चालाकी ‘कह
गुस्सा होते

माँ उनकी एक आवाज़ पर
उठ जाती थी
लाख थकी होने ,
और हमारे रोकने पर भी
पिता की भूख का अंदाज़ था उन्हें

माँ चली गई पिता से दस वर्ष पहले

पिता ने डॉक्टर के कहे पर भी
भरोसा नहीं किया
बार -बार माँ की कनपटी पर हाथ रखते
कहते अभी जी रही हैं

माँ जानती थी
पिता का प्यार
हम तब जान पाए
जब नहीं रही माँ

देखा
एक बूढ़ा, बच्चा
कैसे बन जाता है
क्षण भर में

आखिरी बार सिंदूर पहनाते समय
बिलख उठे
बोले “फिर मिलना”
माँ के दोनों हाथों में लड्डू
रख दिया गया,
और पिता का हाथ खाली हो गया

मैंने तब जाना कि
ये सिर्फ़ मुहावरा नहीं है

लाल चुनरी में सजी माँ को
उठा लिया लोगों ने

लौटे माँ को छोड़ तो
पिता भी
वहीं छूट गए थोड़े से

माँ! उठो न
पिता को किसी ने
अभी तक
कुछ नहीं खिलाया