नंदिता तनुजा
सुनों,
ऐसा नही
कि तुमसें नाराज़ हूँ…
हाँ, लेकिन
कुछ अच्छा नही लगा..
शायद तुम्हारा गलत समझ
कुछ भी जवाब दे देना..
तुम्हें डिस्टर्ब करना
मेरी आदत आज भी नहीं
लेकिन तुम्हारा यूँ बिजी रहना
मुझे कभी इतना पसंद भी नहीं….
कहाँ, क्यों, कब, कैसे
बहुत से सवाल होते हैं..
कभी सोचा है कि
एक भी सवाल में तुम
और तुम होकर भी
मेरा तुमसें कोई सवाल नहीं ..
फ़ासले बहुत है
और फ़ैसले मजबूर है
लेकिन इनमें से कोई भी
ज़िक्र तुमसें शुरु नही
और ये भी एक सच
हर पल में तुम्हारी
फिक्र ज़ेहन में छुपी रही…..
खोने-पाने के डर से
बेशक़ बहुत अलग है
ये मेरा तुमसें इश्क़..
यकीं भी तुम, खफ़ा भी
खुद में उलझा रहता है इश्क़…
कभी सोचना तुम भी
तुम जो कहते हो
मैं सुनकर आज भी रहती
ख़ामोश देखती हूँ वही..
वक़्त जैसा भी जिये
लेकिन मेरे इश्क़ की
आज भी नज़ाकत है वही…
कि सच कहूँ कोई तुमसा नहीं….!!