यूं तो अंबर पर चमकता है जो वो सितारा हूं मैं
दोनों पक्षों में घटता बढ़ता चांद और तारा भी हूं मैं
कभी धरती का नजारा, पावन जल की धारा हूं
क्योंकि एक औरत हूं मैं।।
कहने को तो हवा भी हूं मैं और फिजा भी हूं मैं
जिसे समझ ना पाए मौसम का इशारा भी हूं मैं
मैं ही तो फूलों में खुशबू बनकर खिलती हूं
क्योंकि एक औरत हूं मैं।।
आंचल में ममता और करुणा का भाव भी हूं मैं
खूबसूरती के साथ परिवार की जिम्मेदारी भी हूं मैं
रखती हूं जिंदा अपने भीतर के वजूद को
क्योंकि एक औरत हूं मैं।।
अपनी मुस्कुराहटे देकर अपना सारा दर्द भूल जाती हूं
रिश्तो के बंधनों में बंधी है यूं तो यह दुनिया सारी
मगर हर पल अपनी शक्ति से रोशन कर जाती हूं
क्योंकि एक औरत हूं मैं।।
ना किसी से कुछ भी मांगती हूं ना कुछ चाहती हूं
बदलती आई हूं मैं अक्सर खुद को पग-पग पर
अपने साथ जुड़े हर रिश्ते की खातिर
क्योंकि एक औरत हूं मैं।।
औरों की खातिर मैंने अपनी हर आदत को बदला
कितने ही अरमानों को दबा अपनी चाहतों को बदला
समेट कर खुद को अपनी करवटों को बदला
क्योंकि एक औरत हूं मैं।।
गंगा सी निश्चल हूं और तुलसी सी पावन हूं मैं
पीपल की शीतल छांव सी रसोई की महकती सुगंध सी
समुंदर की बूंद सी बचाती हूं खुद के अस्तित्व को
क्योंकि एक औरत हूं मैं।।
भोर में झंकृत वंदना सी और सांझ की आरती हूं मैं
खामोशी का गीत सी खुद से ही खुद की प्रीत सी
अनंत धार प्रेरणा सी नभ में चमकती दामिनी भी
क्योंकि एक औरत हूं मैं।।
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश