जो सबके होते हैं वो किसी के नहीं होते
लोग दिखते हैं जैसे अक्सर वैसे नहीं होते
मेरे जैसे दिलफेंक भी होते हैं कुछ शायर
ग़ज़ल लिखने वाले सब दिलजले नहीं होते
इब्तिदा-ए-इश्क़ में होते हैं वैसे आशिक़
जिनके ख़त आँसुओं से भीगे नहीं होते
आज जिनको प्यार है तुझसे कल वही कहेंगे
अच्छा होता गर तुझसे मिले नहीं होते
ना वो लोग मिलते हैं ना ही उनका प्यार
खुदा ने जब क़िस्मत में लिखे नहीं होत
आलोक कौशिक
साहित्यकार एवं पत्रकार
मनीषा मैन्शन, बेगूसराय,
बिहार- 851101
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