झूठ की गूंज है,
इन तालियों में मगर,
शान शौक़त से,
महफ़िल सजाता गया
ये भोली भाली जनता को
बना के मूरख,
तालियों के बाद,
थाली बजाता गया
राज आई न कुछ भी,
ज़मीं पर अभी,
बिजलियां बंद कर,
दीपक जलाता गया
मूलभूत बातों से,
होकर बेखबर,
झूठा अफसाना रोज,
इन्हें सुनाता गया
जो लोग नींद से,
अब भी जागे नहीं,
उन मदहोश लोगों को,
किस्सा सुनाता गया
जयलाल कलेत
रायगढ़, छत्तीसगढ़