मैं लौटना चाहूँगा- जसवीर त्यागी

दरवाजे बंद हो रहे हैं
दरवाजे लगातार बंद हो रहे हैं
एक गति से

तेज आँधी ने भर दी है
इंसान की आँखों में
धोखे की धूल

मैं जिस भी दरवाजे पर जाता हूँ
कपकपाएं हाथों से
खटखटाता हूँ दरवाजा

लेकिन कहीं कोई आवाज़ नहीं
कहीं कोई हलचल नहीं

मुझे लगता है
मैं इंसान की देहली पर नहीं
किसी प्राचीन खंडहर में खड़ा हूँ

मेरे ह्रदय के
किसी अज्ञात कोने से
आती है आवाज़

दुनिया के सब दरवाजे
जब बंद हो जाएंगे
तब भी खुला होगा
तुम्हारा दरवाजा मेरे लिए

उस वक़्त मैं
तुम्हारे दरवाजे की ओर
लौटना चाहूँगा

-जसवीर त्यागी