राव शिवराज पाल सिंह
इनायती, जयपुर
मेरा दिल ओ दिमाग हर बार ही डगमगाने लगता है
जब भी मेरा चांद दूर से भी देख मुस्कुराने लगता है
धरती पर का मेरा चांद जब जब मुस्कुराया करता है
आसमां के चांद सुन क्यूं तब इतना शरमाया करता है
समझ नही आता क्यूं आज इतना देर से उगा करता है
मेरा चांद देख क्यों तू एक चौथाई कट जाया करता है
देवता भी भले ही फकत आज का ही क्यों न रहता है
पुजारिन की पूजा की कदर तो बरस भर ही करता है
किरदार भी महबूब तो सदा चांद सा ही रखा करता है
दाग अपने दिल में छुपा के बस चांदनी बांटा करता है
सुन लो ना वह लफ्ज़ जो फकत तुम्हारे लिए कहता है
दुनिया देखे चांद ‘राव’ उसमें भी तुम्हें ही देखा करता है