वंदना मिश्रा
मुझे पता ही नहीं
तुम कैसे आ गये
जीवन में!
शीतल हवा के झोंके की तरह
छीजती ,शख्सियत थी मेरी
टूट रही थी,
भीतर भीतर
तुमने प्रेम नहीं किया
मैंने भी प्रेम नहीं किया
बस जीवन
जीने का साहस दिया तुमने
किताबों से प्यार करना सिखाया,
और उन किताबों के सहारे
लौट आई मैं
इस दुनिया में
दृष्टि दी तुमने
प्रेम नहीं कहा
किया भी नहीं
पर दुआ है कि
हर लड़की को मिले,
ऐसा ही प्रेम
कि
जिसने,
सिखाया
फूलों के प्यार में भी
जान दी जा सकती है