💠
बड़ी मुश्किलों से दिल के जख्म सी रहें है
तुमसे जुदा हैं फिर भी तुमको ही जी रहें हैं
मर भी गए तो हमको गिला तुमसे नहीं है
जहर है ये मुहब्बत, फिर भी हम पी रहें है
💠
दिल को टटोला तो हर जख्म हरा लगता है
आह नई लगती है औऱ दर्द नया लगता है
ये सारा खेल है दिल के जज़्बात का वरना
मैं तेरी क्या लगती हूँ, तू मेरा क्या लगता है
💠
इन आँखों में यादों की नमी रह गयी थी क्या
फिर से मेरी पलकें शबनमी रह गयी थी क्या
जरा-जरा सी बात पे हमें बेसुकून करते हो तुम
बोलो तुम्हें चाहने में कोई कमी रह गयी थी क्या
रूची शाही