उसकी चाहत में: रूची शाही

उसकी चाहत में खुद को कितना गंवाया है
हँसने से ज्यादा तो मैने खुद को रुलाया है
धड़कनें जरा खामोशी से आना तुम दिल में
मैंने उसकी यादों को बड़ी मुश्किल से सुलाया है

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थोड़ी सी मोहलत दे दो, थोड़ा दिल को बहलाने दो
जिद्दी है दिल ये मेरा, इस दिल को जरा समझाने दो
दरवाजे पे खड़े रहे वो, हम करते रहे खुशामद उनकी
मैंने कहा सुनो मत जाओ, उसने कहा अब जाने दो

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खुद ही अपने हाथों हमने अपने दिल को तोड़ दिया
फूलों से नाजुक अरमानों का भी गला मरोड़ दिया
इससे ज्यादा और वफ़ा आखिर हम तुझसे क्या करते
जा तेरी खातिर तुझको हमने हँसते-हँसते छोड़ दिया

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ये अना भी रिश्तों के दरमियान जब तन जाती है
बस नफ़रत ही तो बचती है, चाहत तो छन जाती है
ज्यादा पानी भी पौधों की जड़ों को ढीला कर जाता है
मुहब्बत भी हद से ज्यादा हो तो जहर बन जाती है

रूची शाही