नंदिता तनुजा
आइनें पर
पत्थर फेंकते क्यों हो?
सच-झूठ की हामी
भरवाते ही क्यों हो?
यक़ी खुद पर ग़र जो
आईना भी सच्चा
लेकिन झूठ के अक्स पर
दूसरों को तौलते क्यों हो?
एहसास की शिद्दत का
कभी भरोसा मत तोड़ो
ग़र यक़ी रब है तो
ज़िंदगी को तोड़ते क्यों हो?
है ग़र ज़मीर ज़िंदा तो
किसी से छीनना भी क्यों हो?
वफ़ा के नाम पर
मोहब्बत की राह में चल कर
किसी को छोड़ते क्यों हो?
कि नंदिता टूटना भी लाज़मी
लेकिन फ़क्र महबूब ग़र मेरा
तो फिर सांसो को छीनते क्यों हो?