डॉ. निशा अग्रवाल
शिक्षाविद, पाठयपुस्तक लेखिका
जयपुर, राजस्थान
नारी है सृष्टि की रचयिता, जीवन का भी वह स्रोत,
हर धड़कन में है बसती, उसकी ममता की हर मौज।
संजीवनी सी है वह शक्ति, संसार का भी वह आधार,
फिर भी क्यों है वह सहती, अत्याचारों का भार, दुर्व्यवहार।
माँ भी वह है, बहन भी वह है, पत्नी भी वह, उसके प्रेम की परिभाषा,
फिर क्यों उसको है मिलती, पीड़ा और निराशा?
जिसके आंचल में सारा जहाँ पनपता,
उसी के अस्तित्व पर क्यों शूलों सा है कसता?
क्यों हर कदम पर उसकी गरिमा को है चुनौती,
क्यों नहीं होती उसकी हिफाज़त की कोई नीति?
जिसने खुद को तज कर हमें बनाया है,
क्यों उसे ही इस समाज ने रुलाया है?
आओ अब संकल्प लें, उसके सम्मान की करें रक्षा,
हर नारी को दें उसका हक़, उसका साया बन सच्चा।
अब ना सहेगी कोई नारी, अत्याचारों का प्रहार,
अब हर नारी होगी स्वतंत्र, सशक्त और ख़ुद्दार।