वंदना सहाय
नये साल का जश्न मनाया जा रहा है, बिल्डर ने अपने क्लाइंट्स को भव्य पार्टी दे रखी है। सैकड़ों लोग…धीमी रोशनी…शराब और कबाब…स्वाद कलिकाओं को तृप्त करते हुए बहु व्यंजन…। क्यूँ नहीं बिल्डर अपने क्लाइंट्स पर इतना खर्च करता, यही वे थे जिन्होंने उसके बनाए करोड़ों के लग्ज़री फ्लैट्स खरीदे और उसके काले धन को भी सफेद करने में मदद की।
डिस्को लाइट्स… डांसिंग फ्लोर…मद और नशे में झूमते लोग…। इसी डांसिंग फ्लोर के बगल में रखे एक माइक पर बिल्डर आज घोषणा करने वाला था कि क्लाइंट्स को इस नये साल में उनके फ्लैट्स उन्हें सौंप दिए जाएँगें।
आखिरकार वह समय भी आ गया, जब बिल्डर ने लोगों को फ्लैट्स सौंपने की घोषणा कर डाली। तालियों की गड़गड़ाहट…जाम से जाम की टकराहट।
अपना घर होने की खुशी…।
इन्हीं जश्न मनाते लोगों से कुछ दूर बनाए गए अपार्टमेंट के एक फ्लैट में, जिसके सभी फ्लैट्स क्लाइंट्स को सौंपनें की घोषणा हो रही थी, उसमें मजदूर जोगिंदर सर पर हाथ धरे जाग रहा था। इस अपार्टमेंट के इसी फ्लैट में उसने पिछले चार साल गुजारे थे। जलते-बुझते डिस्को लाइट्स की तरह ही उसके दिमाग में भी ख्याल आ-जा रहे थे। पत्नी और छः वर्षीय बेटी बगल में जमीन पर सो रहे थे। बिल्डर की घोषणा और तालियों की गड़गड़ाहट से दिमाग शून्य हो गया था। पत्नी और बेटी की आवाज लगातार उसके कानों में गूँज रही थी।
पत्नी बार-बार पूछ रही थी- “इस फ्लैट को छोड़कर निकलने के बाद हम कहाँ जाएँगे”?
और बेटी बार-बार कह रही थी-“पापा, यहाँ से मत जाओ ना। यहाँ पार्क और झूले हैं। मुझे यहाँ खेलना और झूले बहुत पसंद हैं”।