पिता का पत्र शिक्षक के नाम: मुकेश चौरसिया

प्रिय शिक्षक,

मैं यह पत्र हिंदी साहित्य में अमर होने की गरज से नहीं लिख रहा हूँ। बल्कि कल ही मुझे मेरे पीए ने बताया कि हर बड़ा नेता शिक्षकों को पत्र लिखता है। शायद ऐसा ही कोई पत्र अमेरिका के किसी राष्ट्रपति ने भी लिखा था।

मुझे कल ही पता चला कि मेरा बेटा तुम्हारे स्कूल में पढ़ता है। दरअसल मैं राजनीति में इतना व्यस्त रहता हूँ कि बच्चों में पूरा ध्यान नहीं दे पाता हूँ। तुम मेरे बच्चे को क्या सिखा रहे हो?

मैंने उसे तुम्हारे पास इसलिए नहीं भेजा कि तुम उसका भेजा खराब कर दो। चूँकि वह मेरा बेटा है इसलिए बहुत सी चीजें वह खुद भी सीख जाऐगा पर फिर तुम क्या करोगे? इसलिए उसे मेरी सलाह के अनुसार कुछ सिखाओ जो बाद में काम आए।

मेरे ख्याल से उसे सीखना पड़ेगा कि सभी व्यक्ति हमारी पार्टी के नहीं होते, और हमारी पार्टी के सभी व्यक्ति वफादार नहीं होते उसे सिखाओ कि हर सिद्धांत के लिए एक पार्टी है, और हर पार्टी का एक सिद्धांत होता है। अपने सिद्धांत के लिए एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने में अपनी इज़्जत कम नहीं होती बल्कि उस पार्टी की इज़्जत में वृद्धि ही होती है।

उसे सिखाओ कि आज के समय में कोई सिद्धांत न होना ही सबसे बड़ा सिद्धांत है। इससे गठबंधन की राजनीति करने में आसानी होती है। हो सके तो उसे सिखाइये कि मेहनत की रोटी पेट तो भर सकती है लेकिन दुनिया के ऐशो-आराम नहीं दिला सकती।

उसे सिखाइये कि गुंडों को पराजित करना सरल है लेकिन उन्हैं पालना और उनसे काम लेना और भी सरल है क्योंकि जहाँ सुई काम नहीं आती वहाँ तलवार काम आती है।

उसे सिखाओ कि इस मुल्क में आदमी नहीं वोट बसते हैं। सबको एक नजर से देखने का यही सबसे सरल तरीका है। यही समाजवाद है। इन वोटनुमा प्राणियों के लिए काम करना और काम करते हुए दिखना दो अलग-अलग बातें हैं।

इनकी शिक्षा-दीक्षा उतनी ही होना चाहिए जिससे कि ये वोट ही बने रहें आदमी न बनने पाए। आदमी बनते ही ये तुम्हारी ही टाँग खींच लेंगें । ये जितने कमजोर और आपस में बँटे होंगे सत्ता पर तुम्हारी पकड़ उतनी ही मजबूत रहेगी।

उसे आज की राजनीति के अनुकूल ढालने की कोशिश करो जिससे वह मेरी विरासत संभालने योग्य बन सके। आखिर मेरी अरबों-खरबों की दौलत कौन संभालेगा? उसे सिखाओ कि राजनीति में वादे करना जितना महत्त्वपूर्ण है उन्हैं पूरा न करना उससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।

उसे सिखाओ कि आज के समय में चाटूकारिता सबसे बड़ा गुण है। ये वो सीढ़ी है जो सीधा उपर ले जाती है। उसे सिखाओ कि अवसरवादी होना कोई अवगुण नहीं है। पार्टी की गुटबाजी पार्टी को भले ही डुबो दे लेकिन अपनी नैया को पार लगा देती है।

उसे सिखाओ कि जलती चिता पर राजनीति की रोटी कैसे सेंकी जा सकती है। उसे सिखाइये कि आंसू बहाने में कोई शर्म नहीं बशर्ते उनसे वोट मिलते हों।

उसे सिखाओ कि जीवन में धर्म जरूरी है परंतु राजनीति में उससे भी ज्यादा जरूरी है। परंतु उसे सावधान करना कि किसी भी धर्म के पक्षधर होने का ठप्पा कभी न लगवाए। सेकुलर बने रह कर वह सबसे वोट ले सकता है। हाँ व्यक्तिगत जीवन में वह चुनाव जीतने के लिए ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, गंडा तावीज सब आजमा सकता है। ये आस्था का मामला है।

उसे किताबों में मत उलझाए रखना उसे प्रकृति का, धूप का, तितलियों के बारे में बताना आगे न जाने किस-किस विषय में भाषण देना पड़े । लोकतंत्र में भाषण का कितना महत्त्व है ये तुम भली भाँति जानते हो और हम जैसे लोगों से हर विषय में मास्टरी की उम्मीद की जाती है।

उसे अपने राजनैतिक विरोधियों का मजाक उड़ाना और उनके आरोप प्रत्यारोपों को खुले मन से स्वीकार करना सिखाओ। उसे सिखाइये कि वह अपनी शारीरिक व मानसिक शक्ति को उसका सर्वाधिक मूल्य देने वाले व्यक्ति को बेचे ओैर यदि कभी अपनी आत्मा और जमीर भी बेचना पड़े तो उसकी भरपूर कीमत अवश्य वसूले।

उसे सिखाइये कि चिल्लाने वाली भीड़ के प्रति अपने कान बंद कर ले और जिस काम को वह ठीक समझता है उसे लाख विरोधों का सामना कर के भी करता रहे।

उसके साथ विनम्रता का व्यवहार करना किंतु उसे ज्यादा लाड़-प्यार में मत सड़ाना। भूलना मत कि वह मंत्री का बेटा है नहीं तो ट्रांसफर करवा दूँगा। हो सकता हो कि आपको ऐसा लगे कि इस चिट्ठी में कोई नई बात नहीं है।

यही मैं आपको भी बताना चाहता हूँ कि मैं कोई नई बात नहीं सिखवाना चाह रहा हूँ। यही राजनीति है। अगर तुम उसे यह सब नहीं सिखा सकते तो मत सिखाना वह एक दिन सब सीख जाएगा क्योंकि मछली के बच्चे को तैरना कौन सिखाता है?

तुम्हारा ही
चरणदास
बकलम

मुकेश चौरसिया
गणेश कॉलोनी, केवलारी,
सिवनी मध्य प्रदेश