अनामिका गुप्ता
अध्यापिका, सपोटरा
आखिर, जुर्म सहेगी कब तक?
अबला बनी रहेगी कब तक?
कितनी सदियां बीत गई
अखियां यह रोते-रोते रीत गई
कभी सीता की अग्नि परीक्षा
कभी द्रौपदी का चीर हरण
अस्मत अपनी बचाने हेतु
किया पद्मिनी ने अग्नि का वर्ण
कहीं अस्मत टुकड़ों में कटती
कहीं लज्जा तंदूर में जलती
कभी तेजाब से जिस्म है जलता
क्यों हैवानों का दिल न पिघलता
देखो कैसी लाचार है बेटी
डोली की जगह अर्थी है उठती
कभी निर्भया कभी दामिनी कभी श्रद्धा और जेनिफर
वहशीपन और बेशर्मी का जाने कब थमेगा सफर
आखिर नारी सृष्टि के रचयिता
फिर क्यों लूटती उसकी अस्मिता
कलम पूछती मेरी आज
कब मिलेगा नारी को सुरक्षित समाज
आखिर कब, कब, कब