अनकहा अव्यक्त सा है,
अरमान मेरा स्वप्न सा है
ख्याल तेरा महक सा है,
दिल है नादाँ बहकता है
ज्यादा नहीं कम अरमान रखता है,
ख़ुशी हो या ग़म मुस्कान रखता है
भावों की ज़मीन पर प्रेम पुष्प रोपता है,
ख़्वाबों की सतरंगी चादर ओढ़ता है
रूह से मिलने की खातिर दिल मेरा ये पिघलता है,
मन अन्तस के स्पर्शों को चाहें जब टटोलता है
प्रेम नदियों में डूबता है,
स्मृतियों में घूमता है
दिल डिंग डाँग डिंग डाँग करता है,
अरमान मेरा परवान चढ़ा करता है
अतुल पाठक ‘धैर्य’
हाथरस, उत्तर प्रदेश