वसंत: गौरीशंकर वैश्य

मनमोहक वसंत आया है
फूल खिले हैं उपवन-उपवन

नवल प्रकृति की सुषमा न्यारी
महक रही है क्यारी-क्यारी

बीत गई है ऋतु पतझड़ की
बजे हवा की पायल छन-छन

अमराई में कोकिल बोले
कानों में मधुरस-सा घोले

रंगबिरंगी उड़ें तितलियाँ
चंचल भौंरे करते गायन।

नन्हीं कलियों-सा मुस्काएँ
सदा सुहाने स्वप्न सजाएँ

जाग उठी हैं नयी उमंगें
मुदित हुआ आशामय जीवन

गौरीशंकर वैश्य विनम्र
117 आदिलनगर, विकासनगर,
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