अनुभूतियों का आईना है- कविता संग्रह ‘अवनी से अंबर तक’: प्रो (डाॅ) शरदनारायण खरे

समीक्षक- प्रो (डाॅ) शरदनारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय जमुचौ महिला महाविद्यालय, मंडला, मप्र
कवयित्री- सुप्रसन्ना झा
कविता संग्रह- अवनी से अंबर तक

‘अवनी से अंबर तक’ संग्रह की कविताएं वस्तुतः अनुभूतियों का आईना है। कवयित्री का जिया हुआ यथार्थ पर कविता खड़ी उतरती है। भावनाओं की प्रखरता कविताओं की विशेषता है। प्रेम व प्रणय की गहराइयों में डूबी यह कविताएं पाठक के अंर्तमन को स्पर्श करती है। सीधे संवाद करने लगती है। प्रकृति से साक्षात्कार करती कविताएं बोलती है। कविताओं में और सुर, लय, ताल सभी कुछ निहित है।

कहीं आध्यात्मिक चेतना है, तो कहीं आलोक की वंदना। कहीं जिंदगी का यथार्थ है, तो कहीं जिजीविषा का भाव। कहीं मां की ममता है तो कहीं पावस की फुहारे। कहीं रूढ़ियों पर प्रहार है तो कहीं श्रमिकों के प्रति संवेदना। कहीं आवाज उठाती शोषण का प्रतिरोध करने की संदेश है तो कहीं आशा के स्वर। कहीं इच्छाओं की सड़क पर निर्बाध यात्रा करता मन है तो कहीं रिश्तो की दृढ़ता व निखरावों की गणित। कहीं मृत्यु का साथ है तो कहीं उत्सव महोत्सव की प्रासंगिकता। कहीं पिता के रिश्ते की महत्ता है तो कहीं हिंदी के प्रति साधना के प्रखर स्वर। कहीं मातृभूमि के प्रति नमन है तो कहीं आज की समग्रता से जीने का संदेश।

आज को अपने आज की तरह जियो
पता नहीं कल आप आ पाएगा या नहीं
मौत को कभी
मौत की तरह मत देखना
नहीं तो जी नहीं पाओगे
बेमौत मर जाओगे

नि:संदेह इस संग्रह की कविताएं विविध वर्णों गुणवत्ता का स्वरूप है। कविताओं की कटु यथार्थ अपने आप में मौलिकता का बयां करती है। कविताएं धरातल से जुड़ी होने के कारण सुखद अहसास कराती है। पावस बादल कृषक सभी कुछ तो कवयित्री ने समेट लिया है। वह लिखती है-

बरखा
कृषकों की प्रतीक्षारत आंखें
घुमड घुमड बादलों का घुमडना
छिटक छिटक विद्युत का छिटकना
कृषकों की आंखों में उम्मीदों की किरण जगना
बूंद बूंद बरखा का बरसना

कविताएं कवयित्री की अनुभवशीलता को व्यक्त करती है। कवयित्री की कोमलता कविताओं में मुखरित है। कवयित्री आशा की दीप मालिकाएँ भी जाग्रत करती है।

भावनाओं की प्रखरता कविताओं की विशेषता है। प्रेम व प्रणय की गहराइयों में डूबी यह कविताएं पाठक के अंतरण को स्पर्श करती है। सीधे संवाद करने लगती है। प्रकृति से साक्षात्कार करती कविताएं बोलती है। कविताओं में और सुर,लय,ताल सभी कुछ निहित है।

कहीं आध्यात्मिक चेतना है, तो कहीं आलोक की वंदना। कहीं जिंदगी का यथार्थ है, तो कहीं जिजीविषा का भाव। कहीं मां की ममता है तो कहीं पावस की फुहारे। कहीं रूढ़ियों पर प्रहार है तो कहीं श्रमिकों के प्रति संवेदना। कहीं आवाज उठाती शोषण का प्रतिरोध करने की संदेश है तो कहीं आशा के स्वर। कहीं इच्छाओं की सड़क पर निर्बाध यात्रा करता मन है तो कहीं रिश्तो की दृढ़ता व निखरावों की गणित। कहीं मृत्यु का साथ है तो कहीं उत्सव महोत्सव की प्रासंगिकता। कहीं पिता के रिश्ते की महत्ता है तो कहीं हिंदी के प्रति साधना के प्रखर स्वर। कहीं मातृभूमि के प्रति नमन है तो कहीं आज की समग्रता से जीने का संदेश।

आज को अपने आज की तरह जियो
पता नहीं कल आप ही पाएगा या नहीं
मौत को कभी
मौत की तरह मत देखना
नहीं तो जी नहीं पाओगे
बेमौत मर जाओगे

निसंदेह इस संग्रह की कविताएं विविध वर्णों गुणवत्ता का स्वरूप है। कविताओं की कटु यथार्थ अपने आप में मौलिकता का बयां करती है। कविताएं धरातल से जुड़ी होने के कारण सुखद अहसास कराती है। पावस बादल, तो कहीं-कहीं वियोग व दर्द में डूबी नजर आती है। अतीत को भला कौन विस्मृत कर सकता है, अतीत वर्तमान बनाकर जीवित हो ही उठता है।

खुदा का शुक्र है
यादों की उम्र नहीं होती
आज…
जहां अक्सर…

कोरोना से लेकर जीवन के अनेक दृश्यों,परिदृश्यों व सत्यों का उद्घाटन करती कविताएं कहानी-प्रश्न के रूप में भी उपस्थित होती है-

तुम्हारी गहरी चुप्पी ने
जीवन में प्रश्न चिन्ह सा लगा दिया
तुमने अपनों के खातिर
मुंह पे ताला क्यों लगा लिया

निसंदेह “अवनी से अंबर तक” की कविताएं अत्यंत उत्कृष्ट व पठनीय है। हर कविता गहरी है, प्रखर है व सराहनीय है। शब्दों की गहरी चितेरी वह भावों की जादूगर बनकर सुप्रसन्नाजी ने सचमुच में अति विशिष्ट सृजन किया है। उन्हें यह कृति सहित उनके सृजन को अनंत मंगल कामनाएं।