दिसंबर: चित्रा पंवार

चित्रा पंवार
गोटका, मेरठ, उत्तर प्रदेश
संप्रति– अध्यापन
साहित्यिक यात्रा– प्रेरणा अंशु, ककसाड, दैनिक जागरण, कथादेश, वागर्थ, सोच विचार, बाल भारती, वर्तमान साहित्य, रचना उत्सव, गाथांतर, अरण्यवाणी आदि अनेक पत्र पत्रिकाओं, तथा कई साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित।
प्रकाशन- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की प्रकाशन योजना के अंतर्गत ‘दो औरतें’ नाम से कविता संग्रह प्रकाशित।
संपर्क– [email protected]

खिड़की से झांकती
दिसंबर की धूप
मेरे नाउम्मीद कानों में
जैसे अचानक आकर
कहा हो तुमने
लो मैं आ गया

दिसंबर की
ठंडी हवाओं ने
सोख ली है
माथे की नमी
जरूरत है
एक अदद चुंबन की

सड़क किनारे
पेट में घुटने
और घुटनों में हाथ फसाए
सोने की नाकामयाब कोशिश में
लेटा
गठरीनुमा भिखारी
इस नतीजे पर पहुंचा
जून से अधिक
बेरहम है दिसम्बर

जीने के लिए क्या चाहिए
रोटी और प्रेम
दिसंबर दोनों देता है
गेहूं बोए जा रहे हैं
तुम याद आ रहे हो

जब से छोड़े हैं पहनने
मां के हाथ से बुने
डिजाइनदार स्वेटर
अब कोई स्त्री नहीं रोकती
बीच राह में
बहुत याद आता है
बचपन वाला वीआईपी दिसंबर

दिसंबर का भाग्य
जैसे गरीब की जिंदगी
धुंध ही धुंध
कोहरा ही कोहरा
दिन छोटा
काली घनी लंबी रात
उजाले की दूर दूर तक
कोई गुंजाइश नहीं

दिसंबर आ गया
वो नहीं आए !!
प्रतीक्षा में हैं
गुड़, मूँगफली
और तिल के लड्डू जैसी
बे सिर पैर की
मेरी बातें